मुगल कालीन स्थापत्य, कला एवं संस्कृति
Mughal period architecture, art and culture
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मुगलकालीन स्थापत्य काल की शुरूआत बाबर के समय से होता है। उसने पानीपत के नकट 'काबुली-बाग' में एक मस्जिद में बनवायी।
इसके अतिरिक्त बाबर ने रुहेलखण्ड में सम्भल की 'जामी मस्जिद' तथा आगरा में लोदी किले के भीतर एक मस्जिद बनवायी। एवं ज्यातिमीय विधि पर आधारित एक उद्यान 'आराम बाग' में लगवाया। जिसे 'नूर अफगान' नाम दिया। गया।
हुमायूँ ने 1533 ई० में दिल्ली मे दीनपशाह (विश्व का शरण स्थल) नामक एक नगर का निर्माण करवाया। जो आज 'पुराने किले' के नाम से विख्यात है। इसके अतिरिक्त हुमायूँ ने हिसार जिले में 'फतहाबाद' नामक स्थान पर फारसी शैली में एक मस्जिद का निर्माण करवाया।
शेरशाह ने दिल्ली पर अधिकार करने के बाद 'शेरगढ़' या 'दिल्ली शेरशाही' नामक नये नगर की नीवं डाली। यद्यपि इसके अवशेषो के रूप में अब 'लाल दरवाजा' और 'खूनी दरवाजा' ही देखने को मिलता है। 1542 ई० में शेरशाह ने दिल्ली के पुराने किले के अंदर 'किला-ए- कुहना' नामक मस्जिद का निर्माण करवाया और उसी परिसर में शेर मण्डल नामक एक अष्टभुजाकार तीन मंजिला मण्डप का निर्माण करवाया। किन्तु शेरशाह की सबसे महत्वपूर्ण कृति बिहार के सासाराम (आधुनिक रोहतास जिला) नामक स्थान पर झील के बीच में एक ऊचें चबूतरे पर उसका मकबरा है। जिसमें भारतीय एवं इस्लामी निर्माण कला का अद्भुत सम्मिश्रण देखने को मिलता है।
अकबर कालीन इमारते- अकबर के शासन काल में बनी पहली इमारत दिल्ली में बना हुमायॅू का मकबरा है। यद्यपि इसके निर्माण में उसका कोई हाथ नही था।
हुमायूँ का मकबरा- यह मकबरा ज्यामितीय चतुर्भुज आकार के बने उद्यान के मध्य एक ऊँचे चबूतरे पर स्थित है। यह 'चार-बाग पद्धति' में बना प्रथम स्थापत्य स्मारक था। इस मकबरे का निर्माण अकबर की सौतली माँ हाजली बेगम ने फारसी वास्तुकर 'मीरक मिर्जा गयास' की देख-रेख में करवाया था।
* इस अकबर की योजना फारसी माडल में वास्तुकला की पंचतंत्र रचना से ली गयी थी।
* इस मकबरे की विशेषता- 'संगमरमर से निर्मित इसका विशाल गुम्बद' एवं द्विगुम्बीय प्रणाली थी।
* यह मुगलकालीन एकमात्र मकबरा है जिसमें मुगलवंश के सर्वाधिक लोग दफनाये गये है।
* इस मकबरे को 'ताजमहल का पूर्वगामी' कहा गया है।
* अकबर के काल में फारसी शैली का हिन्दु एवं बौद्ध शैलियों के साथ सम्मिश्रण हुआ। अकबर की अधिकांश इमारतों में लाल बलुआ पत्थर का प्रयोग मिलता है।
* अकबर कालीन इमारतों में मेहराबी और शहतीरी शैली का समान अनुपात में प्रयोग मिलता है।
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अकबर
अकबर कालीन इमारतों को सुविधानुसार दो भागों में बांटा जा सकता है।
आगरा में निर्मित इमारते- अकबर कालीन आगरे में बनी इमारतों में बहुत थोड़ी ही बची हुई है जिसमें 'अकबर महल' और 'जहांगीरी महल' प्रमुख है।
अकबर ने (1565-73 ई०) अपनी राजधानी आगरा में एक किला बनवाया।
आगरे के दुर्ग में निर्मित 'जहाँगीरी महल' की नकल ग्वालियर के मानसिंह महल से ली गयी है। इस महल में हिन्दु और इस्लामी परम्पराओं का समावेश मिलता है। अकबर कालीन इमारतों में गुम्बदों के प्रयोग से बचने का प्रयास किया गया है।
फतेहपुर सीकरी में निर्मित इमारते - अकबर ने 1570-71 ई० में फतेहपुर सीकरी को अपनी राजधानी बनाया और वहाँ पर अनेक भवनों का निर्माण करवाया। जिन्हें दो श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है।
'धार्मिक', एवं 'लौकिक'।
1. दीवाने आम और दीवाने खास लौकिक प्रयोग के लिए बनाये गये थे। दीवाने आम एक आयताकार प्रांगण था। इसी में बादशाह का सिंहासन रखा रहता था। इसकी मुख्य विशेषता- खम्भे पर निकली हुई बरामदे की छत थी।
दीवाने-खास एक घनाकार आयोजन था। इसके निर्माण में बौद्ध एवं किन्तु वस्तुकला की झलक मिलती है।
राजपूत रानी 'जोधाबाई का महल' फतेहपुर सीकरी का सबसे बड़ा महल था। इस पर उत्कीर्ण अलंकरणों की प्रेरणा दक्षिण के मंदिरों की वास्तुकला से लिया गया है। इस पर गुजराती शैली का व्यापाक प्रभाव दिखाई देता है। यह फतेहपुर सीकरी का सर्वोत्तम महल था।
पंच महल या हवामहल - यह पिरामिड के आकार का पांच मंजिला भवन था। यह नालन्दा के बौद्ध विहारों की प्रेरणा पर आधारित था।
जामा मस्जिद- फतेहपुर सीकरी की सबसे प्रभावोंत्पादक इमारत थी। 'फतेहपुर का गौरव' कहा जाता है। संगमरमर की निर्मित इस मस्जिद को 'फग्र्युसन' ने 'पत्थर में रूमानी कथा' के रूप में प्रशंसित किया है।
अपनी गुजरात विजय की स्मृति में अकबर ने इस मस्जिद 'जामा मस्जिद' के दक्षिणी द्वार पर 135 फीट ऊँचा एक 'बुलन्द दरवाजा' बनवाया। जिसके निर्माण में लाल बलुआ पत्थर का प्रयोग किया गया है। यह ईरान से ली गई। 'अद्र्ध-गुम्बदीय शैली' से बना है।
1585 ई० में अकबर फतेहपुर सीकरी के स्थान पर लाहौर में निवास करने लगा और वहाँ पर उसने लाहौर के किले का निर्माण करवाया।
फतेहपुर सीकरी में स्थित शेख सलीम चिश्ती की दरगाह के प्रांगण में स्थित इस्लाम शाह (वर्गाकार मेहराब का प्रयोग देखने को मिलता है।
अपने शासनकाल के अंतिम समय में अकबर ने इलाहाबाद में 40 स्तम्भों एवं हृदय की रचना को पत्थर एवं मिट्टी की पोशाक पहनाई।
इसके अतिरिक्त अकबर ने अनेक इमारतों का निर्माण करवाया। जिसमें- तुर्की सुल्ताना का महल, खास महल, मरियम-महल, बीरबल महल आदि प्रमुख।
मरियम महल से मुगल चित्रकारी के विषय में जानकारी मिलती है।
तुर्की- सुल्ताना का महल इतना सुन्दर था कि 'पर्सी ब्राउन' ने उसे 'स्थापत्य कला का मोती' कहा है।
फर्ग्यूसन ने ठीक ही कहा है कि- फतेहपुर सीकरी किसी महान व्यक्ति के मस्तिष्क का प्रतिबिम्ब है।
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जहाँगीर-
जहाँगीर ने वास्तुकला की अपेक्षा चित्रकला को अधिक प्रश्रय दिया। फलस्वरूप उसके समय में बहुत ही कम इमारतों का निर्माण हआ।
आगरा के पास सिकन्दरा में स्थित 'अकबर का मकबरा' (जिसके निर्माण की योजना अकबर ने बनायी थी किन्तु निर्माण जहांगीर ने 1613 ई० में करवाया था। इस पाँच मंजिले पिरामिड के आकार के मकबरे की सबसे ऊपरी मन्जिल पूर्णत: संगमरमर की बनी है।
इस मकबरे की उल्ललेखनीय विशेषता- इसका 'गुम्बद-बिहीन' होना तथा बलुआ पत्थर से बना मकबरे का दरवाजा एवं संगमरमर की बनी चार सुन्दर मीनारें है। जो इससे पूर्व देखने को नहीं मिलती है। यह पूरा मकबरा एवं सुव्यवस्थित उद्यान के बीच विशाल चबूतरे पर स्थित है।
जहाँगीर के समय की सबसे उल्लेखनीय इमारत- आगरा में बना 'एतमाउददौला का मकबरा' है। यह चतुर्भुजाकार मकबरा वेदाग सफेद संगमरमर का बना ऐसा पहला मकबरा है।, जिसमें बड़े पैमाने पर संगमरमर का प्रयोग किया गया है, तथा अलंंकरण के लिए इस्लामिक भवनों में पहली बार- 'पित्रा-दुरा' (फूलों वाली आकृतियो में कीमती पत्थरों एवं बहुमूल्य तत्वों की जड़ावत) का प्रयोग मिलता है।
* यद्यपि इस प्रणाली का प्रयोग इससे पूर्व ही 'उदयपुर' (राजस्थान) के 'गोल्ड मण्डल' में 1600 ई० में किया जा चुका था।
जहाँगीर के शासन काल की अन्य इमारत लाहौर मेें रावी नदी के तट पर जहाँगीर की मृत्यु के बाद नूरजँहा ने करवाया था। जहाँगीर के शासन काल में अंतिम या शाहजहाँ के शासन काल के प्रारम्भिक दिनों में निर्मित दिल्ली में 'अब्दुर्रहीम खानखाना का मकबरा' जो न्यूनाधिक रूप से हुमायूँ के मकबरे को प्रतिकृति है पर कुछ मामलों में इससे ताजमहल का पूर्वाभास होता है।
जहाँगीर ने कश्मीर में प्रसिद्ध शालीमार बाग की स्थापना की और उसी ने शेख सलीम चिश्ती के मकबरे में लाल बलुआ पत्थर के स्थान पर संगमरमर लगवाया था।
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शाहजहाँ-
शाहजहाँ का काल मुगल 'वास्तुकला का स्वर्ण युग' माना जाता था। इसके अतिरिक्त यह काल संगमरमर के प्रयोग का चरमोत्कर्ष का माना जाता है।
शाहजहाँ कालीन आगरे में निर्मित इमारतें
आशीर्वादी लाल श्री वास्तव ने शाहजहाँ के शासन काल को वास्तुकला की दृष्टि से स्वर्ण काल कहा है।
आगरे के किले में स्थित 'दीवाने-आम' संगमरमर से बनी शाहजहाँ के काल की पहली इमारत थी। इसके अतिरिक्त दीवाने-खास तथा मोती मस्जिद संगमरमर से निर्मित अन्य प्रसिद्ध इमारतें थी।
* इसके अतिरिक्त शीश महल, खास महल, आगरे के किले में बने नगीना मस्जिद एवं मुस्समन बुर्ज आदि पत्थरों के निर्मित अन्य प्रमुख इमारतें है।
* मोती मस्जिद अपनी पवित्रता एवं चारुता के लिए अत्यधिक प्रसिद्ध थी। यह अंगारे की सभी इमारतों में सबसे सुन्दर और आकर्षक है। इसे शाहजहाँ की बड़ी पुत्री जहाँआरा ने बनवाया था।
* दिल्ली की इमारते- 1638 ई० में शाहजहाँ ने दिल्ली में यमुना नदी के किनारे अपनी नयी राजधानी 'शाहजहाँनाबाद' का निर्माण प्रांरम्भ किया जो 1648 ई० में जाकर पूरा हुआ। और इसी समय मुगल राजधानी दिल्ली स्थानान्तरित हुई।
* शाहजहाँ ने अपनी जीवन राजधानी 'दिल्ली' में एक चुतुर्भुज आकार का किला बनवाया। जो 'लाल-बलुआ पत्थर' से निर्मित होने के कारण- 'लाल-किले' के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इसका निर्माण कार्य 1648 ई० में पूर्ण हुआ। 1 करोड़ की लागत से बनने वाला लाल किला 'हमीद अहमद' नामक शिल्पकार की देखरेख में सम्पन्न हुआ था। इस किले के पश्चिमी द्वार का नाम- 'लाहौरी दरवाजा' एवं दक्षिणी द्वारा का नाम 'दिल्ली-दरवाजा' है।
* दिल्ली के किले में निर्मित 'दीवाने आम' की विशेषता थी इसके पीछे की दीवारे में बना एक कोष्ठ- जहाँ पर विश्व- प्रसिद्ध 'तख्ते-ताउस' रखा जाता था। कोष्ठ में बने कुछ चित्रों पर यूरोपीय शिल्पकला का प्रभाव दिखता है।
* दिवाने-खास- दिल्ली के लाल किले में बनी है, तथा उस पर सोने, संगमरमर तथा बहुमूल्य पत्थर की मिली-जुली सजावट की गयी है। जो उस पर खुदे अभिलेख को चरितार्थ करती है।
'अगर फिरदौस वर रूबी जमीं नस्त'
'हमी अस्त हमीं अस्त' 'अगर दुनियाँ में कहां स्वर्ण है तो यहीं है, यहाँ है। (अमीर खुसरो)
* शाहजहाँ ने दिल्ली के लाल किले के पास 'जामा-मस्जिद' का निर्माण करवाया। इसमें शाहजहाँनी शैली में फूलदार अलंकरण की मेहराबें बनी है।
* ताजमहल- शाहजहाँ कालीन वास्तुकला का चरम दुष्टान्त आगरे में यमुना नदी के तट पर निर्मित उसकी प्रिय पत्नी 'मुमताज महल का मकबरा' है (ताजमहल) है जो 22 वर्षो 9 करोड़ रू. की लागत से तैयार किया जाता है।
* इसका मुख्य स्थापत्यकार- उस्ताद अहमद लाहौरी था, जिसे शाहजहाँ ने 'नादिर-उल-असरार' की उपाधि प्रदान की थी। और इसका प्रधान मिस्त्री या निर्माता 'उस्ताद ईसा' था।
* 'लेनपूल' ने ताजमहल के बारे में लिखा है। कि - 'तामहल संगमरमर के रूप में वह स्वप्न है, जिसकी योजना ईश्वर ने तैयार की तथा निर्माण स्वणर््कारों ने किया। उसने कहा है कि- यह एक ऐसा महान आदर्श विचार है, जो स्थापत्य कला से नहीं, बल्कि मूर्तिकला से सम्बधित है।
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औरंगजेब
* औरंगजेब ने अपनी प्रिय पत्नी रबिया दुर्रानी की याद में 1678 ई० में औरंगाबाद में एक मकबरा बनवाया। जो 'बीबी का मकबरा' नाम से प्रसिद्ध है। इसे ताजमहल की 'घटिया (फूहड़) नकल माना जाता है' इसे 'दक्षिणी का ताजमहल' भी कहा जाता है।
Mughal period architecture, art and culture
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मुगलकालीन स्थापत्य काल की शुरूआत बाबर के समय से होता है। उसने पानीपत के नकट 'काबुली-बाग' में एक मस्जिद में बनवायी।
इसके अतिरिक्त बाबर ने रुहेलखण्ड में सम्भल की 'जामी मस्जिद' तथा आगरा में लोदी किले के भीतर एक मस्जिद बनवायी। एवं ज्यातिमीय विधि पर आधारित एक उद्यान 'आराम बाग' में लगवाया। जिसे 'नूर अफगान' नाम दिया। गया।
हुमायूँ ने 1533 ई० में दिल्ली मे दीनपशाह (विश्व का शरण स्थल) नामक एक नगर का निर्माण करवाया। जो आज 'पुराने किले' के नाम से विख्यात है। इसके अतिरिक्त हुमायूँ ने हिसार जिले में 'फतहाबाद' नामक स्थान पर फारसी शैली में एक मस्जिद का निर्माण करवाया।
शेरशाह ने दिल्ली पर अधिकार करने के बाद 'शेरगढ़' या 'दिल्ली शेरशाही' नामक नये नगर की नीवं डाली। यद्यपि इसके अवशेषो के रूप में अब 'लाल दरवाजा' और 'खूनी दरवाजा' ही देखने को मिलता है। 1542 ई० में शेरशाह ने दिल्ली के पुराने किले के अंदर 'किला-ए- कुहना' नामक मस्जिद का निर्माण करवाया और उसी परिसर में शेर मण्डल नामक एक अष्टभुजाकार तीन मंजिला मण्डप का निर्माण करवाया। किन्तु शेरशाह की सबसे महत्वपूर्ण कृति बिहार के सासाराम (आधुनिक रोहतास जिला) नामक स्थान पर झील के बीच में एक ऊचें चबूतरे पर उसका मकबरा है। जिसमें भारतीय एवं इस्लामी निर्माण कला का अद्भुत सम्मिश्रण देखने को मिलता है।
अकबर कालीन इमारते- अकबर के शासन काल में बनी पहली इमारत दिल्ली में बना हुमायॅू का मकबरा है। यद्यपि इसके निर्माण में उसका कोई हाथ नही था।
हुमायूँ का मकबरा- यह मकबरा ज्यामितीय चतुर्भुज आकार के बने उद्यान के मध्य एक ऊँचे चबूतरे पर स्थित है। यह 'चार-बाग पद्धति' में बना प्रथम स्थापत्य स्मारक था। इस मकबरे का निर्माण अकबर की सौतली माँ हाजली बेगम ने फारसी वास्तुकर 'मीरक मिर्जा गयास' की देख-रेख में करवाया था।
* इस अकबर की योजना फारसी माडल में वास्तुकला की पंचतंत्र रचना से ली गयी थी।
* इस मकबरे की विशेषता- 'संगमरमर से निर्मित इसका विशाल गुम्बद' एवं द्विगुम्बीय प्रणाली थी।
* यह मुगलकालीन एकमात्र मकबरा है जिसमें मुगलवंश के सर्वाधिक लोग दफनाये गये है।
* इस मकबरे को 'ताजमहल का पूर्वगामी' कहा गया है।
* अकबर के काल में फारसी शैली का हिन्दु एवं बौद्ध शैलियों के साथ सम्मिश्रण हुआ। अकबर की अधिकांश इमारतों में लाल बलुआ पत्थर का प्रयोग मिलता है।
* अकबर कालीन इमारतों में मेहराबी और शहतीरी शैली का समान अनुपात में प्रयोग मिलता है।
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अकबर
अकबर कालीन इमारतों को सुविधानुसार दो भागों में बांटा जा सकता है।
आगरा में निर्मित इमारते- अकबर कालीन आगरे में बनी इमारतों में बहुत थोड़ी ही बची हुई है जिसमें 'अकबर महल' और 'जहांगीरी महल' प्रमुख है।
अकबर ने (1565-73 ई०) अपनी राजधानी आगरा में एक किला बनवाया।
आगरे के दुर्ग में निर्मित 'जहाँगीरी महल' की नकल ग्वालियर के मानसिंह महल से ली गयी है। इस महल में हिन्दु और इस्लामी परम्पराओं का समावेश मिलता है। अकबर कालीन इमारतों में गुम्बदों के प्रयोग से बचने का प्रयास किया गया है।
फतेहपुर सीकरी में निर्मित इमारते - अकबर ने 1570-71 ई० में फतेहपुर सीकरी को अपनी राजधानी बनाया और वहाँ पर अनेक भवनों का निर्माण करवाया। जिन्हें दो श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है।
'धार्मिक', एवं 'लौकिक'।
1. दीवाने आम और दीवाने खास लौकिक प्रयोग के लिए बनाये गये थे। दीवाने आम एक आयताकार प्रांगण था। इसी में बादशाह का सिंहासन रखा रहता था। इसकी मुख्य विशेषता- खम्भे पर निकली हुई बरामदे की छत थी।
दीवाने-खास एक घनाकार आयोजन था। इसके निर्माण में बौद्ध एवं किन्तु वस्तुकला की झलक मिलती है।
राजपूत रानी 'जोधाबाई का महल' फतेहपुर सीकरी का सबसे बड़ा महल था। इस पर उत्कीर्ण अलंकरणों की प्रेरणा दक्षिण के मंदिरों की वास्तुकला से लिया गया है। इस पर गुजराती शैली का व्यापाक प्रभाव दिखाई देता है। यह फतेहपुर सीकरी का सर्वोत्तम महल था।
पंच महल या हवामहल - यह पिरामिड के आकार का पांच मंजिला भवन था। यह नालन्दा के बौद्ध विहारों की प्रेरणा पर आधारित था।
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बुलंद दरवाजा (विजय द्वार) फतेहपुर सीकरी, उत्तर प्रदेश, भारत में जामा मस्जिद की ओर |
जामा मस्जिद- फतेहपुर सीकरी की सबसे प्रभावोंत्पादक इमारत थी। 'फतेहपुर का गौरव' कहा जाता है। संगमरमर की निर्मित इस मस्जिद को 'फग्र्युसन' ने 'पत्थर में रूमानी कथा' के रूप में प्रशंसित किया है।
अपनी गुजरात विजय की स्मृति में अकबर ने इस मस्जिद 'जामा मस्जिद' के दक्षिणी द्वार पर 135 फीट ऊँचा एक 'बुलन्द दरवाजा' बनवाया। जिसके निर्माण में लाल बलुआ पत्थर का प्रयोग किया गया है। यह ईरान से ली गई। 'अद्र्ध-गुम्बदीय शैली' से बना है।
1585 ई० में अकबर फतेहपुर सीकरी के स्थान पर लाहौर में निवास करने लगा और वहाँ पर उसने लाहौर के किले का निर्माण करवाया।
फतेहपुर सीकरी में स्थित शेख सलीम चिश्ती की दरगाह के प्रांगण में स्थित इस्लाम शाह (वर्गाकार मेहराब का प्रयोग देखने को मिलता है।
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सलीम चिश्ती के मकबरे के उच्च संकल्प के साथ पैनोरमा। बुलंद गेट, दादूपुरा, फतेहपुर सीकरी। |
अपने शासनकाल के अंतिम समय में अकबर ने इलाहाबाद में 40 स्तम्भों एवं हृदय की रचना को पत्थर एवं मिट्टी की पोशाक पहनाई।
इसके अतिरिक्त अकबर ने अनेक इमारतों का निर्माण करवाया। जिसमें- तुर्की सुल्ताना का महल, खास महल, मरियम-महल, बीरबल महल आदि प्रमुख।
मरियम महल से मुगल चित्रकारी के विषय में जानकारी मिलती है।
तुर्की- सुल्ताना का महल इतना सुन्दर था कि 'पर्सी ब्राउन' ने उसे 'स्थापत्य कला का मोती' कहा है।
फर्ग्यूसन ने ठीक ही कहा है कि- फतेहपुर सीकरी किसी महान व्यक्ति के मस्तिष्क का प्रतिबिम्ब है।
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जहाँगीर-
जहाँगीर ने वास्तुकला की अपेक्षा चित्रकला को अधिक प्रश्रय दिया। फलस्वरूप उसके समय में बहुत ही कम इमारतों का निर्माण हआ।
आगरा के पास सिकन्दरा में स्थित 'अकबर का मकबरा' (जिसके निर्माण की योजना अकबर ने बनायी थी किन्तु निर्माण जहांगीर ने 1613 ई० में करवाया था। इस पाँच मंजिले पिरामिड के आकार के मकबरे की सबसे ऊपरी मन्जिल पूर्णत: संगमरमर की बनी है।
इस मकबरे की उल्ललेखनीय विशेषता- इसका 'गुम्बद-बिहीन' होना तथा बलुआ पत्थर से बना मकबरे का दरवाजा एवं संगमरमर की बनी चार सुन्दर मीनारें है। जो इससे पूर्व देखने को नहीं मिलती है। यह पूरा मकबरा एवं सुव्यवस्थित उद्यान के बीच विशाल चबूतरे पर स्थित है।
जहाँगीर के समय की सबसे उल्लेखनीय इमारत- आगरा में बना 'एतमाउददौला का मकबरा' है। यह चतुर्भुजाकार मकबरा वेदाग सफेद संगमरमर का बना ऐसा पहला मकबरा है।, जिसमें बड़े पैमाने पर संगमरमर का प्रयोग किया गया है, तथा अलंंकरण के लिए इस्लामिक भवनों में पहली बार- 'पित्रा-दुरा' (फूलों वाली आकृतियो में कीमती पत्थरों एवं बहुमूल्य तत्वों की जड़ावत) का प्रयोग मिलता है।
* यद्यपि इस प्रणाली का प्रयोग इससे पूर्व ही 'उदयपुर' (राजस्थान) के 'गोल्ड मण्डल' में 1600 ई० में किया जा चुका था।
जहाँगीर के शासन काल की अन्य इमारत लाहौर मेें रावी नदी के तट पर जहाँगीर की मृत्यु के बाद नूरजँहा ने करवाया था। जहाँगीर के शासन काल में अंतिम या शाहजहाँ के शासन काल के प्रारम्भिक दिनों में निर्मित दिल्ली में 'अब्दुर्रहीम खानखाना का मकबरा' जो न्यूनाधिक रूप से हुमायूँ के मकबरे को प्रतिकृति है पर कुछ मामलों में इससे ताजमहल का पूर्वाभास होता है।
जहाँगीर ने कश्मीर में प्रसिद्ध शालीमार बाग की स्थापना की और उसी ने शेख सलीम चिश्ती के मकबरे में लाल बलुआ पत्थर के स्थान पर संगमरमर लगवाया था।
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शाहजहाँ-
शाहजहाँ का काल मुगल 'वास्तुकला का स्वर्ण युग' माना जाता था। इसके अतिरिक्त यह काल संगमरमर के प्रयोग का चरमोत्कर्ष का माना जाता है।
शाहजहाँ कालीन आगरे में निर्मित इमारतें
आशीर्वादी लाल श्री वास्तव ने शाहजहाँ के शासन काल को वास्तुकला की दृष्टि से स्वर्ण काल कहा है।
आगरे के किले में स्थित 'दीवाने-आम' संगमरमर से बनी शाहजहाँ के काल की पहली इमारत थी। इसके अतिरिक्त दीवाने-खास तथा मोती मस्जिद संगमरमर से निर्मित अन्य प्रसिद्ध इमारतें थी।
* इसके अतिरिक्त शीश महल, खास महल, आगरे के किले में बने नगीना मस्जिद एवं मुस्समन बुर्ज आदि पत्थरों के निर्मित अन्य प्रमुख इमारतें है।
* मोती मस्जिद अपनी पवित्रता एवं चारुता के लिए अत्यधिक प्रसिद्ध थी। यह अंगारे की सभी इमारतों में सबसे सुन्दर और आकर्षक है। इसे शाहजहाँ की बड़ी पुत्री जहाँआरा ने बनवाया था।
* दिल्ली की इमारते- 1638 ई० में शाहजहाँ ने दिल्ली में यमुना नदी के किनारे अपनी नयी राजधानी 'शाहजहाँनाबाद' का निर्माण प्रांरम्भ किया जो 1648 ई० में जाकर पूरा हुआ। और इसी समय मुगल राजधानी दिल्ली स्थानान्तरित हुई।
* शाहजहाँ ने अपनी जीवन राजधानी 'दिल्ली' में एक चुतुर्भुज आकार का किला बनवाया। जो 'लाल-बलुआ पत्थर' से निर्मित होने के कारण- 'लाल-किले' के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इसका निर्माण कार्य 1648 ई० में पूर्ण हुआ। 1 करोड़ की लागत से बनने वाला लाल किला 'हमीद अहमद' नामक शिल्पकार की देखरेख में सम्पन्न हुआ था। इस किले के पश्चिमी द्वार का नाम- 'लाहौरी दरवाजा' एवं दक्षिणी द्वारा का नाम 'दिल्ली-दरवाजा' है।
* दिल्ली के किले में निर्मित 'दीवाने आम' की विशेषता थी इसके पीछे की दीवारे में बना एक कोष्ठ- जहाँ पर विश्व- प्रसिद्ध 'तख्ते-ताउस' रखा जाता था। कोष्ठ में बने कुछ चित्रों पर यूरोपीय शिल्पकला का प्रभाव दिखता है।
* दिवाने-खास- दिल्ली के लाल किले में बनी है, तथा उस पर सोने, संगमरमर तथा बहुमूल्य पत्थर की मिली-जुली सजावट की गयी है। जो उस पर खुदे अभिलेख को चरितार्थ करती है।
'अगर फिरदौस वर रूबी जमीं नस्त'
'हमी अस्त हमीं अस्त' 'अगर दुनियाँ में कहां स्वर्ण है तो यहीं है, यहाँ है। (अमीर खुसरो)
* शाहजहाँ ने दिल्ली के लाल किले के पास 'जामा-मस्जिद' का निर्माण करवाया। इसमें शाहजहाँनी शैली में फूलदार अलंकरण की मेहराबें बनी है।
* ताजमहल- शाहजहाँ कालीन वास्तुकला का चरम दुष्टान्त आगरे में यमुना नदी के तट पर निर्मित उसकी प्रिय पत्नी 'मुमताज महल का मकबरा' है (ताजमहल) है जो 22 वर्षो 9 करोड़ रू. की लागत से तैयार किया जाता है।
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ताजमहल का पैनोरमा आगरा की छतों पर दिखता है |
* इसका मुख्य स्थापत्यकार- उस्ताद अहमद लाहौरी था, जिसे शाहजहाँ ने 'नादिर-उल-असरार' की उपाधि प्रदान की थी। और इसका प्रधान मिस्त्री या निर्माता 'उस्ताद ईसा' था।
* 'लेनपूल' ने ताजमहल के बारे में लिखा है। कि - 'तामहल संगमरमर के रूप में वह स्वप्न है, जिसकी योजना ईश्वर ने तैयार की तथा निर्माण स्वणर््कारों ने किया। उसने कहा है कि- यह एक ऐसा महान आदर्श विचार है, जो स्थापत्य कला से नहीं, बल्कि मूर्तिकला से सम्बधित है।
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औरंगजेब
* औरंगजेब ने अपनी प्रिय पत्नी रबिया दुर्रानी की याद में 1678 ई० में औरंगाबाद में एक मकबरा बनवाया। जो 'बीबी का मकबरा' नाम से प्रसिद्ध है। इसे ताजमहल की 'घटिया (फूहड़) नकल माना जाता है' इसे 'दक्षिणी का ताजमहल' भी कहा जाता है।