मंगलवार, 5 मई 2020

अढाई दिन का झोंपड़ा

                 

                                अढ़ाई दिन का झोपड़ा
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अढाई दिन का झोंपड़ा

एक ऐतिहासिक ईमारत है, जो राजस्थान के शहर अजमेर में स्थित है। माना जाता है कि यह ऐतिहासिक इमारत चौहान सम्राट बीसलदेव (विग्रहराज चतुर्थ) ने सन 1153 में बनवाई थी। यह मूलत: संस्कृत विद्यालय थी, जिसे बाद में शाहबुद्दीन मुहम्मद ग़ोरी ने मस्जिद का रूप दे दिया। इस मस्जिद को बनवाने में #जाॅन_मार्शल कहते है कि सिर्फ़ ढाई दिन ही लगे, इसलिए इसे 'अढाई दिन का झोंपड़ा' कहा जाता है।

इस इमारत में सात मेहराबें बनी हुई हैं। ये मेहराबें हिन्दू-मुस्लिम स्‍थापत्‍य शिल्‍पकला के अनूठे उदाहरण हैं।
यह ख़्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती दरगाह से आगे कुछ ही दूरी पर स्थित है।
इस खंडहरनुमा इमारत में 7 मेहराब एवं हिन्दु-मुस्लिम कारीगिरी के 70 खंबे (16 मुख्य) बने हैं तथा छत पर भी शानदार कारीगिरी की गई है।
इस से कई बातें प्रचलित है और #पर्सी_ब्राउन अब हर साल यहाँ (ढाई) अढाई दिन का मेला लगता है।
इसका नाम इस के निर्माण के कारण ही अढाई दिन का झोंपड़ा पडा है।
यहाँ पहले बहुत बड़ा संस्कृत का विद्यालय था।
1198 में मुहम्मद ग़ोरी ने उस पाठशाला को इस मस्जिद में बदल दिया।
इसका निर्माण थोडा सा फिर से करवाया।
अबु बकर ने इसका नक्शा तैयार किया था।
मस्जिद का अन्दर का हिस्सा मस्जिद से अलग किसी मंदिर की तरह से लगता है।

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