बुधवार, 6 मई 2020

राजस्थान में प्रचलित सिक्के Coins prevalent in Rajasthan


राजस्थान में प्रचलित सिक्के
Coins prevalent in Rajasthan
  • “Bibliography of Indian Coins”  नामक ग्रंथ में भारतीय सिक्कों को सचित्र क्रमबद्ध वैज्ञानिक            विवेचन उपलब्ध है।
  • केब ने 1893 ई. में 'द करेंसीज ऑफ दी स्टेट्स ऑफ राजपूताना' पुस्तक लिखी।
  • सिक्कों के अध्ययन को 'न्यूमिसमेटिक्स' कहा जाता है।
  • सर्वप्रथम भारत में शासन करने वाली यूनानी शासकों के सिक्कों पर लेख एवं तिथियाँ                उत्कीर्ण मिलती है।
  • सर्वाधिक सिक्के उत्तरी मौर्यकाल में मिलते है।
  • सर्वाधिक सोने के सिक्के गुप्तकाल में जारी किये गये थे।
  • कुषाणवंशी शासक वीम कदफिसस ने सर्वप्रथम भारत में सोने का सिक्का तैयार करवाया।
  • कुषाणों के समय सर्वाधिक शुद्ध सोने के सिक्के प्रचलित थे।
  • ब्रिटिश भारत का राजस्थान में सर्वाधिक प्राचीन चाँदी का सिक्का 'कलदार' था।
  • शेरशाह के सिक्कों में 180 ग्रेन को 'रूपया' नाम दिया गया। जो वर्तमान में प्रचलित है।
  • राजस्थान में किसी राजवंश द्वारा जारी सिक्कों में सर्वप्रथम चौहानवंशीय सिक्कों का               जिक्र हुआ है।
  • 1 इनमें वासुदेव का द्रम/विशोषक (ताँबे), रूपक (चाँदी), दीनार(सोने का सिक्का) था।
  • रंगमहल (हनुमानगढ़) यहाँ पर कुषाण कालीन सिक्के मिले है, जिन्हें 'मुरण्डा' कहा गया है।
  • गुरारा, सीकर जिले के इस गाँव से 2744 पंचमार्क प्राप्त हुए है। इनमें से 61 सिक्कों पर 'थ्री                     मैन' अंकित है
  • बीकानेर - गजशाही सिक्का (चाँदी)।
  • जैसलमेर - मुहम्मदशाही, अखैशाही, अखयशाही, डोडिया (ताँबा)
  • उदयपुर - स्वरूपशाही, चांदोड़ी, शाहआलमशाही, ढ़ींगला, त्रिशुलियां, भिलाड़ी, कर्षापण,                                        भीड़रिया, पदमशाही ।
  • डूंगरपुर - उदयशाही सिक्का।
  • बाँसवाड़ा - सालिमशाही सिक्का , लक्ष्मणशाही।
  • प्रतापगढ़ - आलमशाही सिक्का।  
  • शाहपुरा - ग्यारसदिया सिक्का , माधोशाही। 
  • कोटा - गुमानशाही, लक्ष्मणशाही सिक्के। 
  • झालावाड        - मदनशाही सिक्का। 
  • करौली         - कटार झााड़शाही।
  • धौलपुर           - तमंचाशाही सिक्का। 
  • भरतपुर           -  शाहआलम।
  • अलवर           - अखयशाही, रावशाही सिक्के , रावशाही टक्का।
  • जयपुर           -  झाड़शाही, मुहम्मदशाही, माधोशाही।
  • जोधपुर - विजयशाही, भीमशाही, गदिया, फदिया सिक्के , लल्लूलिया,  रूपया,                                           ढल्बूशाही।
  • सोजत (पाली)  -  लल्लू लिया।
  •         सलूम्बर            -  पद्यशाही (ताम्रमुद्रा)।
  • किशनगढ़        -  शाहआलम।
  • बूँदी  -  रामशाही सिक्का,ग्यारहसना, कटारशाही, चेहरेशाही

चंदबरदाई- पृथ्वीराज रासौ

चंदबरदाई- पृथ्वीराज रासौ


  • चंदबरदाई का जन्म 1148 ई. में लाहौर में हुआ। ये पृथ्वीराज चौहान तृतीय के राजकवि, मित्र व         सहयोगी थे, उन्होनें अपने मित्र का अंतिम क्षण तक साथ दिया था।
  • चंदबरदाई को हिंदी (ब्रजभाषा हिंदी) का प्रथम महाकवि माना जाता है
  • पृथ्वीराज रासौ , चंदबरदाई द्वारा रचित महाकाव्य, जिसका अंतिम भाग इसके पुत्र जल्हण ने           पूर्ण  किया। इसकी सबसे प्राचीन प्रति बीकानेर के राजकीय पुस्तकालय में मिली है।
  • पृथ्वीराज रासौ की भाषा पिंगल है, जो राजस्थान की ब्रजभाषा का पर्याय है।
  • पृथ्वीराज रासौ को 'हिंदी की पहली रचना महाकाव्य होने का सम्मान प्राप्त है। इसमें 10,000 से             अधिक छंद है और तात्कालीन प्रचलित 6 भाषाओं का प्रयोग किया गया है। ढ़ाई हजार पृष्ठों              के इस ग्रंथ में 69 समय/सर्ग/अध्याय है।
  • चंदबरदाई की बेटी का नाम राजबाई था ।
  • पृथ्वी राज चौहान तृतीय द्वारा मोहम्मद गौरी को अलग-अलग ग्रंंथों में कई बार पराजित किया हुआ बताया जाता है। जैसे - नयन चंद्र सूरी के हम्मीर महाकाव्य में सात बार मोहम्मद गौरी को पृथ्वीराज चौहान द्वारा पराजित करना बताया गया है और चंद्र शेखर के सुर्जन चरित में 21 बार, मेरूतुंग की प्रबंध चिंतामणि में 23 बार, पृथ्वीराज प्रबन्ध में आठ बार , हिन्दु-मुस्लिम संघर्ष का जिक्र किया, परंतु निर्णायक युद्ध दो (तराईन) ही हुए है।
  • पृथ्वीराज रासो के अनुसार चौहान और तुर्कों के मध्य 21 बार मुठभेड़ हुई।
  • तराईन के युद्धों के प्रारंभिक स्रोत -चंदबरदाई - पृथ्वीराज रासौ, हसन निजामी- ताज-उल-मासिर,         मिनहाज-उस-सिराज- 'तबकात-ए-नासिरी।

प्राचीन भारत के प्रमुख राज्य / संस्थापक / राजधानियाँ

  प्राचीन भारत के प्रमुख राज्य / संस्थापक / राजधानियाँ

      शासक वंश/राज्य                        संस्थापक                राजधानी

  • कुषाण वंश                             कडफिसस प्रथम                     पुरूषपुर (पेशावर)
  • गुप्त वंश                                     श्री गुप्त                                     पाटलिपुत्र
  • पुष्यभूमि वंश                             नरवद्र्धन                     थानेश्वर, कन्नौज
  • कदम्ब वंश                             मयूरशर्मन                     बनवासी (वैजयन्ती)
  • पल्लव                                     सिंहविष्णु                      कांची
  • चालुक्य (वातापी)                     जयसिंह                      वातापीया  बादामी
  • चालुक्य (कल्याणी)                     तैलप द्वितीय                              मान्यखेत/कल्याणी
  • चालुक्य (वेंगी)                             विष्णुवर्धन                       वेंगी
  • राष्ट्रकूट                                      दन्तिदुर्ग                       मान्यखेत
  • पाल                                              गोपाल                               मुंगेर
  • गुर्जर-प्रतिहार                              हरिशचन्द्र                        कन्नौज
  • गहड़वाल                                      चन्द्रदेव                        कन्नौज
  • चौहान                                      वासुदेव                        अजमेर, शाकम्भरी
  • चन्देल                                       नन्नुक                         खजुराहो
  • परमार                                       उपेन्द्र/कृष्णराज                        धारा, उज्जैन
  • सोलंकी (गुजरात के 
  • चौलुक्य)                                       मूलराज प्रथम                         अन्हिलवाड़


भारतीय संस्कृति का विदेशों में प्रसार The spread of Indian culture abroad



                                      भारतीय संस्कृति का विदेशों में प्रसार

भारत का बाह्य देशों से संबंध अभूतपूर्व रहा है। भारत में विदेशी आक्रमणीकारी, विजेता, व्यापारी, धर्म प्रचारक विदेशों से आते रहे है तथा भारत से भी व्यापारिक, धर्म प्रचारक व उपनिवेशकों ने विदेशों में जाकर भारतीय सभ्यता व संस्कृति का प्रसार किया।

  • भारत का संबंध मध्य एशिया व दक्षिणी पूर्वी एशिया देशों से हुआ। यह संपूर्ण क्षेत्र वृहत्तर भारत के नाम से जाना जाता था।
  • वृहत्तर भारत का विभाजन हम दों भागों में कर सकते है -
                   1. मध्य एशिया, तिब्बत, चीन।
                   2. हिन्द चीन, दक्षिण पूर्व एशिया।
भारत व मध्य एशिया

  • चीन भारत, ईरान के बीच के प्रदेशों को मध्य एशिया कहा जाता है। या चीनी तुर्किस्तान भी कहा           जाता है।
  • इसमें काशगर (शैलदेश) यारकन्द (कोक्कुक), खोतान (खोतुम्न), शानशान, र्तुफान(भरूक)        कूची (कूचा) करसहर (अग्रिदेश) आदि राज्यों की गणना की जाती है।
  • मध्य एशिया के उत्तर में कूचीदक्षिण में खोतान भारतीय संस्कृति के प्रसिद्ध केन्द्र थे। मध्य           एशिया के दक्षिण क्षेत्र में स्थित खोतान भारतीय संस्कृति  का सर्वमुख केन्द्र था। यहां पर                     अशोक  के पुत्र कुणाल ने हिन्दू राज्य की स्थापना की इसे यहां के लेखों में कुस्तन कहा गया है।
  • फाहियान के अनुसार यहां पर प्रसिद्ध गोमती बिहार था जिसमें 3000 भिक्षु निवास करते थे।
  • मध्य एशिया के उत्तर में कूची प्रसिद्ध केन्द्र था।
  • प्रसिद्ध विद्वान कुमारायण व जीवा की संतान कुमारजीव ने यहां बौद्ध धर्म का प्रचार किया।              आठंवीं शताब्दी में यहां पर मुख्यत: बौद्ध संस्कृति का प्रचार हुआ। मध्य एशिया के शासकों                सुवर्णपुष्प,  हरदेव, सुवर्णदेव ने ब्राह्मी लिपि को अपनाया तथा कुलीन वर्ग के संस्कृत को मध्य              एशिया में प्राप्त  भारतीय ग्रन्थों में धम्मपद व सारिपुत्र प्रकरण उल्लेखनीय है।
  • भारतीय कला की गंधार शैली का प्रभाव भी यहां पर दृष्टिगोचर होता है।

तिब्बत
  • यह क्षेत्र पामीर के पठार से ठका हुआ है।  पामीर को दुनिया की छत भी कहते है। पहाडिय़ा इसे           तीन भागों में विभक्त करती है। जिन्हें छोलखा कहा जाता है।
  • महाभारत  व कालीदास के रघुवंश में इसे त्रिविष्टप कहा गया है।
  • 7वीं सदी के पूर्व तक का काल तिब्बत का अन्धकार युग है। 7वीं सदी के आस-पास एक राजा संगपों/सनंगपों का उल्लेख मिलता है। इनके विद्वान थोनमि संभोट/थम्भोटी को भाषा व व्याकरण के अध्ययन हेतु भारत भेजा और नालंदा विश्वविद्यालय में थम्भोटी ने तिब्बती लिपि का आविष्कार किया इसलिए थम्भोटी को तिब्बती साहित्य का जनक कहते है  वापिस जाकर उसने वर्णमाला व व्याकरण का अविष्कार किया 
  • सनगंपों ने भारत से नालंदा से शांतिरक्षित व औदंतपुरी से पद्मसंभव नामक विद्वानों को तिब्बत आमंत्रित किया। इनके लिए वहां पर ओदंतपुरी की नकल पर वहां समयस बिहार बना है।
  • 11वीं सदी में विक्रमशिला के महान श्रीज्ञान दीपंकर अतिशा वहां गये व बौद्ध धर्म का प्रचार किया। विक्रमाशिला के आदर्श पर वहां साक्या बिहार बना है।
  • तिब्बती लिपि का अविष्कार नालन्दा में हुआ। तिब्बत के 14वेें दलाई लामा वर्तमान में शरणार्थी के रूप में भारत रह रहे है।

चीन
  • महाभारत व मुनुसमृति में चीन का उल्लेख मिलता है। अर्थशास्त्र में चीनी सिल्क का उल्लेख प्राप्त होता है। चीन का नामकरण संभवत वहां के एक वंश चिन वंश के नाम पर हुआ। (127 ई०पू० से 220 ई० तक) भारत का व्यापार प्राचीन काल से ही चीन के साथ था। चीनी रेशम का उल्लेख चिनाशंकु के नाम से अर्थशास्त्र में हुआ।
  • सर्वप्रथम कुषाण शासकों ने दो ई०पू० मेंं कुछ ग्रंथ चीनी दरबार में भेंट कर चीन को बौद्ध धर्म से परिचित करवाया। यहां के हान वंश के शासक मिंगटी ने भारत से धर्मरक्षित व काश्यप मातंग को चीन आमत्रित किया। और उनके रहने के लिए शवेताश्वार विहार बनवाया। यह चीन का प्राचीनत बौद्ध विहार था।
  • तांग राजा के काल को चीन में बौद्ध धर्म का स्वर्ण युग कहते है।भारतीय स्तूपों की नकल पर बने स्तूप वहां पैगोड़ा कहलाते है।
  • चीन से चौथी शताब्दी में फाहयान, सॉतवीं शताब्दी में क्रमश: हवेनसांग और इत्सिंग भारत आये 

हिन्दी चीन
  • ईसा की दुसरी शताब्दी तक इन राज्यों में सर्वप्राचीन राज्य कम्बुज (कम्बोडिया) जिो चीनी साहित्य में फूनान भी कहते है, में भारतीय संस्कति की स्थापना हुई 
  • यहां पर हिन्दु राज्य की स्थापना कौडिन्य नामक ब्राह्मण ने की थी।
  •  कम्बोडिया में सिमरिप शहर में मिकांग नदी के किनारेा प्रसिद्ध निर्मित अकोरवाट/अंगकोरवाट का विष्णु मंदिर  है। इसका निर्माण सूर्यवर्मन द्वितीय (1113 से 1145) ने करवाया। जिसे धरणीन्द्रवर्मन नें पूर्ण करवाया 

  • यहां का अन्य राज्य चम्पा (वियतनाम ) बर्मा (म्यांमार) तथा स्याम (थाईलैण्ड) व मलाया (मलेशिया)है। चम्पा (वियतनाम) में भद्रवर्मन ने माइसोन में शिव मंदिर का निर्माण करवाया।
  • बर्मा में क्यानजित्थ नामक शासक ने पगान (अरिमर्दनपुर) में आनन्द मंदिर बनवाया।
  • मलय प्रायद्वीप का प्रसिद्ध व्यापारिक स्थल तक्कोल था।
दक्षिण पूर्वी एशिया
  • इस क्षेत्र मेंं जावा(यवद्वीप), सुमात्रा(सुवर्णद्वीप), बालि, बोर्निया (वरूणद्वीप)आदि प्रदेश आते है। सुमात्रा इन्डानेशिया में प्राचीन राज्य श्रीविजय द्वारा स्थापित किया गया था।

  • 8 वीं सदी ई०पू० में जावा और सुमात्रा के प्रदेशों पर शैलेन्द्र राजाओं को शासन था।
  • इन्डानेशिया के जावा के प्रसिद्ध बोरोबूदूर के स्तूप का निर्माण शैलेन्द्र राजाओं ने 9 वीं श्ताब्दी में करवाया। स्तूप की खोज सर थॉमस स्टैमफोर्ड रैफल्स द्वारा की गई थी जावा को रामायण में यवद्वीप भी कहा गया है।
  • यहां का एक प्रसिद्ध ग्रंथ तत्वनिंगव्यवहार है जिसमें ऋग्वेद के पुरूष सूक्त भी भांति चारों वर्णो की उत्पति ब्रह्मा के विभिन्न अंगों से बताई गयी है।
  • जावा के साहित्य पर भारतीय व विशेषकर कालिदास का प्रभाव है। यहां के साहित्य को इण्डो-जावानी साहित्य भी कहा जाता है।
  • यहां पर कालिदास के ग्रंथ रघुवंश के आधार पर सुमन सान्तक लिखा गया।
  • कुमार संभव के आधार पर समरदहन लिखा गया।
  • बोरोबूदूर के स्तूप को मजूमदार ने विश्व का 8 वां आशचर्य कहा है।

  • चम्पा (वियतनाम) के माइसोन मन्दिर,अकोरथोम का बेयोन मन्दिर और जावा का लोरोजोंगरम मन्दिर भारतीय संस्कति के  सर्वोतम उदाहरण है 
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The spread of Indian culture abroad

India's relations with external countries have been unprecedented. In India, foreign invaders, conquerors, merchants, missionaries have been coming from abroad and businessmen, missionaries and colonists from India also spread Indian civilization and culture abroad.
India was associated with Central Asia and South East Asia countries. This entire region was known as Greater India.
We can divide Greater India into two parts -
                   1. Central Asia, Tibet, China.
                   2. Indian China, Southeast Asia.

India and Central Asia
  • The territories between China, India, Iran are called Central Asia. Or also called Chinese Turkistan.
  • It counts the states of Kashgar (Shailesh) Yarkand (Kokkuk), Khotan (Khotumn), Shanshan, Rtufan (Bharuk) Kucchi (Kucha) Karshar (Agridesh) etc.
  • Kutch in the north of Central Asia and Khotan in the south were famous centers of Indian culture. Khotan, located in the south region of Central Asia, was the main center of Indian culture. It is here that Ashoka's son Kunal founded the Hindu kingdom, it has been called Kustan in the articles here.
  • According to Fahian, there was the famous Gomti Bihar in which 3000 monks lived.
  • Coochie was a famous center in the north of Central Asia.
  • Kumarajiv, the progenitor of the famous scholar Kumarayana and Jeeva, preached Buddhism here. Mainly Buddhist culture was propagated here in the eighth century. The rulers of Central Asia, Suvarnapush, Hardev, Suvarnadeva adopted the Brahmi script and the Dhammapada and Sariputra episodes are notable among the Indian texts of the elite Sanskrit received in Central Asia.
  • The Gandhar style of Indian art is also visible here.
Tibet
  • The region is weathered by the Pamir plateau. Pamir is also called the roof of the world. The hills divide it into three parts. Those are called Chholkha.
  • In the Raghuvansha of Mahabharata and Kalidasa, it has been called Trivishtap.
  • The period before the 7th century is the dark era of Tibet. There is a mention of a king Sangapo / Sanangapo around 7th century. His scholar Thonmi Sambhot / Thambhoti was sent to India for the study of language and grammar and Thambhoti invented the Tibetan script at Nalanda University, hence Thambhoti is called the father of Tibetan literature, going back he invented the alphabet and grammar.
  • The sangamps invited scholars named Padmasambhava from Nalanda from India and Padmasambhava from Oudantpuri. For these, there is a time Bihar created on the imitation of Odantpuri there.
  • In the 11th century, the great Shri Gyan Dipankar Atisha of Vikramshila went there and preached Buddhism. Sakya Bihar is built there on the idol of Vikramashila.
  • The Tibetan script was invented in Nalanda. The 14th Dalai Lama of Tibet is currently living in India as a refugee.
China
  • China is mentioned in Mahabharata and Munusmriti. Chinese silk finds mention in economics. China was probably named after a dynasty called the Chin dynasty. (127 BC to 220 CE) India's trade was with China since ancient times. Chinese silk was mentioned in economics under the name of Chinashunku.
  • The Kushan rulers first introduced some texts to the Chinese court in two BC and introduced China to Buddhism. Here the ruler of Han dynasty, Mingti, invited China from India to protect and Kashyap Matang. And built Shwetashwar Vihar for them. It was the ancient Buddhist vihara of China.
  • The era of the Tang king is called the Golden Age of Buddhism in China. Stupas built on imitation of Indian stupas are called pagodas there.
  • Fahyan from China came to India in the fourth century, Havensang and Etsing respectively in the seventeenth century
Hindi China
  • By the second century of Christ, Indian culture was established in the ancient state of Kambuj (Cambodia) which is also called Funan in Chinese literature.
  • Here the Hindu kingdom was founded by a Brahmin named Kaudinya.
  •  The city of Simrip in Cambodia has the Vishnu temple of the famously built Akorvat / Angkor Wat on the banks of the Mikang River. It was built by Suryavarman II (1113 to 1145). Which was completed by Dharanindravarman
  • Other states here are Champa (Vietnam), Burma (Myanmar) and Syam (Thailand) and Malaya (Malaysia). In Champa (Vietnam), Bhadravarman built the Shiva temple in Maison.
  • In Burma, a ruler named Kyanjitth built the Anand Temple at Pagan (Arimardanpur).
  • The famous trading site of the Malay Peninsula was Takkol.
  • South East Asia
  • The region includes Java (Yavadweep), Sumatra (Suvarnadweep), Bali, Bornea (Varunadweep) etc. Sumatra was founded by Srivijaya, the ancient kingdom in Indonesia.
  • In the 8th century BC, the territories of Java and Sumatra were ruled by the Shailendra kings.
  • The famous Borobudur stupa of Java in Indonesia was built by the Shailendra kings in the 9th century. The stupa was discovered by Sir Thomas Stamford Raffles. Java is also called Yavadwip in the Ramayana.
  • A famous book here is the Tattvarnainga, in which, like the male Sukta of the Rigveda, the origin of the four varnas is told from the different parts of Brahma.
  • Indian and especially Kalidas influence on the literature of Java. As here

मंगलवार, 5 मई 2020

अढाई दिन का झोंपड़ा

                 

                                अढ़ाई दिन का झोपड़ा
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अढाई दिन का झोंपड़ा

एक ऐतिहासिक ईमारत है, जो राजस्थान के शहर अजमेर में स्थित है। माना जाता है कि यह ऐतिहासिक इमारत चौहान सम्राट बीसलदेव (विग्रहराज चतुर्थ) ने सन 1153 में बनवाई थी। यह मूलत: संस्कृत विद्यालय थी, जिसे बाद में शाहबुद्दीन मुहम्मद ग़ोरी ने मस्जिद का रूप दे दिया। इस मस्जिद को बनवाने में #जाॅन_मार्शल कहते है कि सिर्फ़ ढाई दिन ही लगे, इसलिए इसे 'अढाई दिन का झोंपड़ा' कहा जाता है।

इस इमारत में सात मेहराबें बनी हुई हैं। ये मेहराबें हिन्दू-मुस्लिम स्‍थापत्‍य शिल्‍पकला के अनूठे उदाहरण हैं।
यह ख़्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती दरगाह से आगे कुछ ही दूरी पर स्थित है।
इस खंडहरनुमा इमारत में 7 मेहराब एवं हिन्दु-मुस्लिम कारीगिरी के 70 खंबे (16 मुख्य) बने हैं तथा छत पर भी शानदार कारीगिरी की गई है।
इस से कई बातें प्रचलित है और #पर्सी_ब्राउन अब हर साल यहाँ (ढाई) अढाई दिन का मेला लगता है।
इसका नाम इस के निर्माण के कारण ही अढाई दिन का झोंपड़ा पडा है।
यहाँ पहले बहुत बड़ा संस्कृत का विद्यालय था।
1198 में मुहम्मद ग़ोरी ने उस पाठशाला को इस मस्जिद में बदल दिया।
इसका निर्माण थोडा सा फिर से करवाया।
अबु बकर ने इसका नक्शा तैयार किया था।
मस्जिद का अन्दर का हिस्सा मस्जिद से अलग किसी मंदिर की तरह से लगता है।

राजस्थान में प्रमुख बौद्ध स्थल Major Buddhist sites in Rajasthan

                             


                                            राजस्थान में प्रमुख बौद्ध स्थल 

  • छोटी खाटू (नागौर), नोह (भरतपुर), ओसियाँ (जोधपुर), लालसोट (दौसा) के स्तूप। नगरी                       (चितौडग़ढ) के शिलालेख।
  • शेरगढ़, भीनमाल (जालौर), रंगमहल, चाकसू (जयपुर) आदि।
  • विराट नगर - जयपुर जिले का बैराठ क्षेत्र तथा टोंक जिले का क्षेत्र जो महाभारत काल में मत्स्य             प्रदेश की राजधानी था।
  • मत्स्य नरेश विराट की राजधानी बैराठ में बुद्धकालीन अवशेष मिले है।
  • यहाँ की भीमसेन डूँगरी पर भ्राबू शिलालेख के अवशेष मिले है।
  • जोधपुरा - बैराठ के उत्तर में स्थित जहाँ चाकू, छुरी, कुल्हाड़ी व लोहा गलाने की भट्टी मिली है।
  • झालावाड़ - जिले के कौल्वी एवं विनायक हथियागोड़ एवं गुनाई स्थानों पर बौद्ध धर्म के रॉक कट           मंदिर एवं मठ मिले है।
  • अशोक विहार (अजमेर) - बुद्ध की 2500वीं जन्म शताब्दी पर अजमेर में 1976 में महाबोधि अशोक         विहार की स्थापना की गई।
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Major Buddhist sites in Rajasthan

Stupas of Chhoti Khatu (Nagaur), Noh (Bharatpur), Osian (Jodhpur), Lalsot (Dausa). Inscriptions of Nagari (Chittorgarh).
Shergarh, Bhinmal (Jalore), Rangmahal, Chaksu (Jaipur) etc.
Virat Nagar - Bairath area of ​​Jaipur district and area of ​​Tonk district which was the capital of Matsya state during Mahabharata period.
Buddhist relics have been found in Barat, the capital of Matsya Naresh Virat.
Remains of Bhrabu inscription have been found here at Bhimsen Dungri.
Jodhpur - North of Bairath where knife, knife, ax and iron smelting furnace have been found.
Jhalawar - Rock cut temples and monasteries of Buddhism have been found at Kaulvi and Vinayak Hathiyagod and Gunai places of the district.
Ashok Vihar (Ajmer) - Mahabodhi Ashok Vihar was established in 1976 in Ajmer on the 2500th birth century of Buddha.


गुप्तकालीन कला एवं साहित्य Gupta Art and Literature

                                           
                                            गुप्तकालीन  कला एवं साहित्य
कला एवं साहित्य के विकास की दृष्टि से गुप्तकाल को भारतीय इतिहास का स्वर्णयुग कहा गया है।
वास्तु कला :-
  • गुप्तकाल में ही मंदिर निर्माण कला का जन्म हुआ।
  • देवगढ़ का दशावतार मन्दिर (झांसी) भारतीय मंदिर निर्माण में शिखर का संभवत: पहला उदाहरण है। शिखर युक्त मंदिर का निर्माण गुप्त युग की महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है।
  • गुप्तकाल में मंदिर निर्माण में छोटी ईंटों व पत्थरों का प्रयोग हुआ है। भीतर गाँव (कानपुर) का मन्दिर ईंटों से निर्मित है तथा वर्णाकार चबूतरे पर बना है। इसके शिखर में भारत में सर्वप्रथम मेहराबों का प्रयोग किया गया।
  • गुप्तकाल में ब्राह्मण एवं बौद्ध गुहा मन्दिरों  का भी निर्माण हुआ।
  • उदयगिरि (विदिशा) में ब्राह्मण गुहा मन्दिर का निर्माण हुआ। इसका निर्माण चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के सेनापति वीरसेन ने कराया। उदयगिरि के गुहा मन्दिर में विष्णु के वराह अवतार की विशाल मूर्ति स्थापित की गई है। वराह अवतार को समुद्र से पृथ्वी का उद्धार करते हुए अंकित किया गया है।
  • गुप्तकालीन मूर्तिकारों ने मथुरा शैली से प्रभावित होकर मूर्तियाँ बनाई।
  • गंगा यमुना की मूर्ति गुप्तकाल की देन है।
  • वराह की वास्तविक आकार की मूर्ति एरण से प्राप्त हुई जिसका निर्माण धन्यविष्णु ने किया।
  • गुप्त मूर्तिकला का सर्वोत्तम उदाहरण सारनाथ की मूर्तियाँ है।गुप्तकाल में मूर्तिकला के तीन प्रमुख केन्द्र थे- मथुरा, सारनाथ और पाटलिपुत्र।
  • सुल्तान गंज से बुद्ध की 7 1/2 फीट ऊँची तांबे की प्रतिमा मिली है। 
  • देवगढ़ के दशावतार मन्दिर में विष्णु की मूर्ति, उदयगिरि के वराह अवतार की मूर्ति तथा सूर्य की काशी व कौशाम्बी से मिली मूर्तियाँ गुप्तकाल की मूर्तिकला की परिपक्वता को दर्शाती हैं।
  • सारनाथ में बैठै बुद्ध की मूर्ति तथा मथुरा में खड़े बुद्ध की मूर्ति मिली है।
  • अजन्ता की गुफा संख्या 16, 17 तथा 19 गुप्तकाल की हैं। 
  • बाघ की गुफायें भी गुप्तकाल की गुफा स्थापत्य का उदाहरण हैं।
  • अजन्ता व बाघ की गुफाओं में बने चित्र गुप्तकालीन चित्रकला की प्रगति को दर्शाते हैं।
  • अजन्ता
  • अजन्ता की गुफाएँ  महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में है। अनिस्ठा (अनिष्ठा) गाँव गुफाओं से दो मील दूर है। इसी गाँव के नाम पर इन गुफाओं का नाम अजन्ता पड़ा।
  • अजन्ता गुफाओं की खोज 1819 ई. में मद्रास रेजिमेन्ट के एक सैनिक ने की। अजन्ता में कुल 29 गुफायें हैं।
  • इन गुफाओं में 9, 10, 19 व 26 नम्बर की गुफायें चैत्य गुफायें है शेष 25 गुफायें विहार हैं। गुफा संख्या 13 सबसे प्राचीन है।
  • 8वीं से 13वीं गुफा तक की छ : गुफायें हीनयान संप्रदाय की हैं।
  • अब 17वीं गुफा में सबसे अधिक चित्र हैं। पहले 16वीं गुफा में सर्वाधिक चित्र थे पर अधिकांश नष्ट हो गये।
  • नवीं और दसवीं गुफा के चित्र सबसे प्राचीन है। ये चित्र प्रथम शाताब्दी ई. के समय सातवाहन शासकों के संरक्षण में बनाये गये थे।
  • गुफा संख्या 16, 17 व 19 गुप्तकालीन है। इन गुफाओं को वाकाटक नरेश पृथ्वीसेन द्वितीय के सामन्त व्याघ्र देव (वराह देव) ने बनवाया था।
  • गुफा संख्या 1 तथा 2 के वित्र छठी-सातवीं शातब्दी में वातापी के चालुक्यों के काल में बने।

चित्रों विषय गुफा नं.
1. बैठी स्त्री का चित्र - नौ
2. पुजारियों के दल का स्तूप की ओर जाते चित्र- नौ
3. जातक कथाओं के चित्र - दस
4. स्त्रियों से घिरे राजा के जुलूस का चित्र - दस
5. उपदेश सुनते भक्तगण - सोलह
6. गौतम बुद्ध के बैराग्य उत्पन्न होने के चार दृश्य- सोलह
7. मरणासन्न राजकुमारी - सोलह
यह 16वीं गुफा का सबसे प्रसिद्ध चित्र है।
8. महाहंस जातक कथा का चित्र जिसमें राजा स्वर्ण हंस- सत्रह
    से कथा सुन रहा है
9. राहुल समर्पण का चित्र व बुद्ध का गृह त्याग का चित्र- सत्रह
10. मार विजय का चित्र - प्रथम
11. चालुक्य सम्राट पुलकेशिन द्वितीय की सभा में आये फारसी- प्रथम
     नरेश खुसरों परवेज द्वितीय के दूत के स्वागत का दृश्य
12. बोधिसत्व पदï्मपाणि व वज्रपाणि के चित्र- प्रथम
13. सांडों की लड़ाई - प्रथम
14. विदुर पण्डित जातक का चित्र - द्वितीय
15. बुद्ध जन्म - द्वितीय
16. माया का स्वप्न - द्वितीय
17. झूला झूलती राजकुमारी - द्वितीय

अजन्ता की गुफाओं में तीन तरह के चित्र हैं -
  • 1. आलेखन    2. वर्णन    3. अलंकरण
  • चित्र निर्माण में टेम्पेरा और फ्रेस्कों विधि का प्रयोग किया गया है।
  • बाघ के चित्रों का विषय लौकिक जीवन से संबंधित था जबकि अजन्ता के चित्रों का विषय धार्मिक था।
  • ऐलोरा (औरंगाबाद) से भी सातवीं से नौवीं शताब्दी के बीच की 34 शैलकृत गुफाएं हैं। इनमें 1 से 12 तक बौद्ध, 13 से 29 तक हिन्दू व 30 से 34 तक जैन गुफाएँ हैं।
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Gupta Art and Literature

The Gupta period has been called the golden age of Indian history in terms of development of art and literature.
Vastu art: -
Temple building art was born in the Gupta period itself.
Dashavatar Temple (Jhansi) of Deogarh is probably the first example of Shikhar in Indian temple construction. The construction of the shikhara temple is an important achievement of the Gupta era.
During the Gupta period, small bricks and stones have been used in temple construction. The inner village (Kanpur) temple is built of bricks and is built on a square platform. Arches were first used in India at its peak.
During the Gupta period, Brahmin and Buddhist Guha temples were also built.
A Brahmin Guha temple was built at Udayagiri (Vidisha). It was built by Chandragupta Vikramaditya's commander Veerasen. A huge statue of the Varaha avatar of Vishnu has been installed in the Guha temple of Udayagiri. The Varaha avatar is inscribed, saving the earth from the sea.
Gupta sculptors, influenced by the Mathura style, made sculptures.
The idol of Ganga Yamuna is a gift from the Gupta period.
The actual size statue of Varaha was obtained from Eran which was constructed by Bhanavishnu.
The best example of Gupta sculpture is the sculptures of Sarnath. The three major centers of sculpture during the Gupta period were Mathura, Sarnath and Pataliputra.
A 7 1/2 feet high copper statue of Buddha has been found from Sultan Ganj.
The idol of Vishnu in the Dashavatar temple of Deogarh, the statue of the Varaha avatar of Udayagiri and the sculptures found from Kashi and Kaushambi of the Sun reflect the maturity of sculpture of the Gupta period.
A statue of Buddha sitting in Sarnath and a statue of Buddha standing in Mathura has been found.
Ajanta's cave numbers 16, 17 and 19 belong to the Gupta period.
Tiger caves are also an example of cave architecture of the Gupta period.
The paintings in Ajanta and tiger caves show the progress of Gupta painting.
Ajanta
Ajanta caves are in Aurangabad district of Maharashtra. Anistha (Anishtha) village is two miles from the caves. These caves were named Ajanta after the name of this village.
Ajanta caves were discovered in 1819 AD by a soldier from the Madras Regiment. There are a total of 29 caves in Ajanta.
In these caves 9, 10, 19 and 26 number caves are chaitya caves, the remaining 25 caves are viharas. Cave number 13 is the oldest.
Six caves from 8th to 13th cave belong to Hinayana sect.
Now the 17th cave has the most paintings. The first 16th cave had the most paintings, but most were destroyed.
The ninth and tenth cave paintings are the most ancient. These paintings were made under the patronage of the Satavahana rulers during the first century AD.
Cave numbers 16, 17 and 19 are Gupta. These caves were built by the feudatory Vyagha Deva (Varaha Deva) of Vakataka king PrithviSense II.
The caves of Caves 1 and 2 were built during the Chalukyas of Vatapi in the sixth-seventh century.
Paintings subject cave no.
1. Picture of a woman sitting - nine
2. Picture of a group of priests going towards the stupa - Nine
3. Pictures of Jataka tales - Ten
4. Picture of the procession of the king surrounded by women - ten
5. Devotees Hearing Sermons - Sixteen
6. Four scenes of the birth of Gautama Buddha - sixteen
7. Deathly Princess - Sixteen
This is the most famous painting of the 16th cave.
8. Picture of Mahahansa Jataka tale in which Raja Swarna Hans - seventeen
    Listening to the story from
9. Picture of Rahul dedication and picture of Buddha's sacrifice - Seventeen
10. Picture of Mara Vijay - First
11. Persian-first came to the assembly of Chalukya Emperor Pulakeshin II
     The scene of the reception of the emissary of Naresh Khusron Parvez II
12. Pictures of Bodhisattva Padmapani and Vajrapani - First
13. Battle of the Bulls - First
14. Picture of Vidur Pandit Jataka - Second
15. Buddha Birth - Second
16. Maya's Dream - Second
17. Hammock Swinging Princess - II

Ajanta caves have three types of paintings -
1. drafting 2. description 3. embellishments
The method Tempera and Fresco have been used in the drawing.
The theme of tiger paintings was related to cosmic life while the subject of Ajanta paintings was religious.
Ellora (Aurangabad) also has 34 rock-cut caves between the seventh and ninth centuries. Among them are Buddhist from 1 to 12, Hindu from 13 to 29 and Jain caves from 30 to 34.

मौर्यकालीन कला

                         


                                                                   कला
मौर्यकालीन कला

  1. पटना के बुलंदी बाग क्षेत्र से मौर्यकालीन लकड़ी का महल मिला है।
  2. पटना के समीप कुम्रहार गाँव से मौर्यकालीन राजप्रसाद के अवशेष मिले है।
  3. फाह्यान के अनुसार -'यह प्रासाद मानव कृति नहीं है, वरन देवों द्वारा निर्मित है।
  4. एरियन के अनुसार इस राजप्रासाद की शानोशौकत का मुकाबला न तो सूसा और न                   एकबतना ही कर सकते है।
  5. मौर्यकाल में काष्ठ के स्थान पर पत्थर का उपयेाग शुरू हुआ।
  6. अशोक के एकाश्मक स्तम्भ (एक ही पत्थर को तराश कर बनाये गये) मौर्य कला के                   सर्वश्रेष्ठ नमूने है। इन पर चमकदार पॉलिश है।
  7. अशोक के स्तम्भ उत्तरप्रदेश के चुनार (मिर्जापुर) के बलुआ पत्थर से बने है।

स्तम्भों का शीर्ष अलग बना हुआ है तथा शीर्ष पर पशुओं की मूर्तियां है। शीर्ष का मुख्य अंश घंटा है। इसे अवांगमुखी कमल कहा जाता है। शीर्ष पर चार पशुओं का अंकन है - हाथी, घोड़ा, सिंह व बैल।

  • अशोक के स्तम्भ पशु
  • सारनाथ स्तम्भ चार सिंह
  • लौरिया नन्दनगढ़ एक सिंह
  • रामपुरवा स्तम्भ एक बैल
  • वैशाली स्तम्भ एक सिंह
  • संकिसा स्तम्भ एक हाथी
  • सांची स्तम्भ चार सिंह
रामपुरवा के दूसरे स्तम्भ पर एक सिंह बैठाया गया है।
कौशाम्बी, रामपुरवा, वैशाली तथा संकिसा के स्तम्भ लेख विहीन है।
  • अशोक के एकाश्मक स्तम्भों का सर्वश्रेष्ठ नमूना सारनाथ के सिंह स्तम्भ का शीर्ष है। जिसमें चार सिंह पीठ सठाये बैठे है तथा एक चक्र धारण किये हुए है। यह चक्र बुद्ध द्वारा धर्मचक्रप्रवर्तन का प्रतीक है। आधुनिक भारत का राष्ट्रीय चिह्न भी सारनाथ के स्तम्भ से लिया गया है। इस चक्र में मूलत: 32 तीलियां थी।
  • सांची व भरहुत के मूल स्तूप के निर्माण का श्रेय भी अशोक को दिया जाता है।
  • भारतीय स्तम्भ सपाट है जबकि ईरानी स्तम्भ नालीदार है।
  • अशोक ने वास्तुकला की नई शैली गुफा निर्माण को शुरू किया।
  • बराबर (गया जिला) की चार गुफाओं का निर्माण अशोक ने करवाया। इनके नाम कर्ण, सुदामा, चौपार तथा विश्व झोंपड़ी है।
  • बराबर की पहाडिय़ों में लोमश ऋषि की गुफा भी मौर्य कालीन है। इसका निर्माण दशरथ ने कराया।
  • अशोक के पौत्र दशरथ ने भी नागार्जुनी पहाडिय़ों में आजीवकों को 3 गुफाएं प्रदान की। इनमें गोपी गुफा प्रसिद्ध है। वापी गुफा तथा पदथिक गुफा अन्य गुफायें है।


                                             लोक कला
मथुरा के परखम ग्राम से प्राप्त यक्ष मूर्ति (यह मणिभद्र कहलाती है), पटना के दीदारगंज से प्राप्त चामर ग्राहिणी यक्षी, बेसनगर से प्राप्त यक्षी, ग्वालियर की मणिभद्र यक्षी की मूर्ति, राजघाट (वाराणसी) से प्राप्त त्रिमुख यक्ष की प्रतिमा, शिशुपालगढ़ से प्राप्त यक्ष की प्रतिमा।
पटना के बुलन्दी बाग से नर्तकी की एक मृणमूर्ति है तथा रथ का एक पहिया मिला है, जिसमें 24 तीलियां है। उड़ीसा में धौली में चट्टान को काटकर हाथी आकृति बनाई गई।

   नोह (भरतपुर)       राजस्थान में आरंभिक मूर्तिकला का उद्गम एवं विकास स्थल। 
     -                                        यहाँ जाख बाबा की विशाल यक्ष-प्रतिमा मिली है।

माध्यमिका       यहाँ बौद्ध एवं वैष्णव मूर्तियाँ मिली है।

मालव नगर (टोंक)       यहाँ शुंगकालीन देवी का फलक मिला है।

रंगमहल       इसमें एकमुखी शिवलिंग तथा उमा माहेश्वर की मृण्मूर्तियाँ मिली है।
                     सरस्वती उपत्यका राजस्थान में यहाँ से अर्जकपाद की मृण्मूर्ति मिली है।

आभानेरी (दौसा) यहाँ से गुप्तकालीन मूर्तियाँ (हर्षमाता के मंदिर) मिली है।

अर्थूना 11वीं-12वीं शताब्दी में परमार वंशीय नरेशों की राजधानी, 
                                         मूर्तियों का प्रमुख केन्द्र रहा।

महिषासुर मर्दिनी की मूर्ति ओसियों में स्थित है।

लिंगोद्भव की मूर्ति हर्षनाथ (सीकर) में स्थित है।

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Art - Mauryan art


  1. Mauryan wooden palace is found from Bulandi Bagh area of ​​Patna.
  2. Remains of Mauryan Rajprasad have been found from Kumrahar village near Patna.
  3. According to Fahyan - 'This prasada is not a human work, but it is made by the gods.
  4. According to Arian, neither the Susa nor the Ekbatna can combat the majesty of this royal palace.
  5. In the Mauryan period, the use of stone started in place of wood.
  6. Ashoka's monolithic pillar (carved into a single stone) is the best specimen of Mauryan art. These have shiny polish on them.
  7. The pillars of Ashoka are made of sandstone in Chunar (Mirzapur), Uttar Pradesh.

The top of the pillars remains separate and the animal sculptures at the top. The main part of the top is the hour. It is called Avangamukhi Lotus. There is a marking of four animals at the top - elephant, horse, lion and bull.

  • Ashoka's Pillar Animals
  • Sarnath Pillar Char Singh
  • Lauria nandangarh a lion
  • Rampurwa pillar a bull
  • Vaishali pillar a lion
  • Sankisa pillar an elephant
  • Sanchi Pillar Char Singh

A lion is seated on the second pillar of Rampurwa.
The columns of Kaushambi, Rampurwa, Vaishali and Sankisa are devoid of articles.

  • The best specimen of Ashoka's monolithic pillars is the top of the lion pillar of Sarnath. In which four lions are sitting on their backs and holding a circle. This cycle is a symbol of Dharmachakra Pravartan by Buddha. The national icon of modern India is also derived from the pillar of Sarnath. Originally there were 32 matchsticks in this cycle.
  • Ashoka is also credited for building the original stupas of Sanchi and Bharhut.
  • The Indian column is flat while the Iranian column is corrugated.
  • Ashoka introduced the new style of architecture to cave construction.
  • Four caves of Barabar (Gaya district) were built by Ashoka. Their names are Karna, Sudama, Chaupar and Vishwa Shanti.
  • The cave of Lomash Rishi is also a Mauryan period in equal hills. It was built by Dasharatha.
  • Ashoka's grandson Dasharatha also provided 3 caves to the livelihoods in the Nagarjuni hills. Gopi cave is famous among them. Vapi cave and Padthik cave are other caves.


Folk Art Mauryan 
Yaksha idol (it is called Manibhadra) from Parcham village of Mathura, Chamar Grahini Yakshi from Patna's Didarganj, Yakshi from Besnagar, Manibhadra Yakshi idol from Gwalior, Trimukh Yaksha statue from Rajghat (Varanasi), from Shishupalgarh Statue of Yaksha.
There is a dancer's pottery from Bulandi Bagh in Patna and a wheel of chariot has been found, which has 24 spokes. The rock cut elephant shape in Dhauli in Orissa was made.


स्तंभ/मीनारें/मस्जिद/छतरियाँ

                                                


                                               स्तंभ/मीनारें/मस्जिद/छतरियाँ

  1. नागौर मेड़ता की मस्जिद (मेड़ता), संत तारकीन शाह (संत हमीदुद्दीन) की दरगाह
  2. चितौडग़ढ विजय स्तंभ एवं कीर्ति स्तंभ
  3. कपासन हजरत दीवान शाह की दरगाह
  4. प्रतापगढ़ काकाजी की दरगाह (कांठल का ताजमहल)
  5. गागरोण   मीठेशाह की दरगाह (झालावाड़)
  6. जयपुर सरगासूली (ईसरलाट), ईदगाह मस्जिद, नालीसर मस्जिद, अकबर की                                       मस्जिद
  7. गलियाकोट फखरूद्दीन की दरगाह (डूंगरपुर)
  8. जोधपुर गमतागाजी की मीनार, इकमीनार मस्जिद, गुलाब खाँ का मकबरा,                                             गुलरकालूदान की मीनार
  9. अलवर सफदरगंज की मीनार
  10. कोटा नेहरखाँ की मीनार
  11. शिवगंज   सैयद बादशाह की दरगाह स्थित है।(सिरोही)
  12. अजमेर ढ़ाई दिन का झौंपड़ा
  13. बयाना         ऊषा मस्जिद(भरतपुर)
  14. जालौर अलाउद्दीन की मस्जिद

 
                                          छतरियाँ

  • 6 खंभों की छतरी लालसोट (दौसा) में स्थित।
  • 8 खंभों की छतरी बाडोली, महाराणा प्रताप से संंबंधित।
  • 32 खंभों की छतरी रणथम्भौर में स्थित।
  • 80 खंभों की छतरी अलवर, मूसी महारानी से संबंधित, महाराजा विनयसिंह द्वारा                                                     निर्मित यह छतरी टेढ़ी रेखाओं की महराबदार शैली का एक                                                          अत्यंत सुंदर नमूना है।
  • 84 खंभों की छतरी बूंदी, भगवान शिव को समर्पित, राजा अनिरूद्ध के भ्राता देव द्वारा                                                 निर्मित।
  • क्षारबाग की छतरियाँ कोटा एवं बूँदी, यहाँ हाड़ा शासकों की छतरियाँ स्थित है।
  • बड़ा बाग की छतरी जैसलमेर, यहाँ भाटी शासकों की छतरियाँ स्थित है।
  • राजा बख्तावर सिंह की छतरी अलवर में स्थित।
  • राजा जोधसिंह की छतरी          बदनौर में स्थित।
  • सिसोदियावंश के राजाओं की छतरियाँ आहड़ (उदयपुर) में स्थित।
  • रैदास की छतरियाँ चितौडग़ढ़ में स्थित।
  • गोपाल सिंह की छतरी करौली में स्थित।
  • देवकुंड (बीकानेर) राव बीकाजी व रायसिंह की छतरियाँ प्रसिद्ध है।
  • मंडोर (जोधपुर) यहाँ पंचकुंड स्थान पर राठौड़ राजाओं की छतरियाँ स्थित है।
  • गैटोर (नाहरगढ़) यहाँ कछवाहा शासकों की छतरियाँ स्थित है। यहाँ जयसिंह                 द्वितीय से मानसिंह द्वितीय तक की छतरियाँ है। केवल ईश्वरीसिंह की यहाँ छतरी नहीं है।






अलाउद्दीन खिलजी का राजपूताना अभियान



                                      अलाउद्दीन खिलजी का राजपूताना अभियान 


सन् रियासत परिवर्तित नाम     तात्कालीन शासक  जौहर               विद्रोही 
1301 रणथम्भौर   -     हम्मीर चौहान रंग देवी/पुत्री पदम्ला     रणमल/ रतिपाल
1303 चितौडग़ढ़ खिज्राबाद     रतन सिंह पद्मिनी                    राघव चेतन
        1305        मालवा
1308 सिवाणा दुर्ग खैराबाद        शीतल देव मैणादे                         भावले
1311 सोनारगढ़ जलालाबाद     कान्हड़देव जैतलदे                        बिका दहिया

राजस्थान के शासक व सेनानायक/दरबारी विद्वान



राजस्थान के शासक व सेनानायक/दरबारी विद्वान -
शासक सेनानायक/दरबारी

  1. राव मालदेव जैता व कुंपा
  2. उदय सिंह         जयमल व फत्ता
  3. राव रतनसिंह गौरा व बादल
  4. परमार्दिदेव चंदेल आल्हा व उदल
  5. हम्मीर चौहान रणमल व रत्तिपाल (विद्रोही) व धर्मसिंह व भीमसिंह (ईमानदार)
  6. कान्हड़दे         जैता व देवड़ा, बिका दहिया (विद्रोही)
  7. शीतलदेव         सातल व सोम, वीर पँवार
  8. जैत्रसिंह         बालक व मदन
  9. वीर धवल (गुजरात) वास्तुपाल व तेजपाल
  10.         पृथ्वीराज चौहान       पृथ्वीभट्ट ,वागीश्वर ,विश्वरूप ,विद्यापति गौड़ , जयानक, जनार्दन 
  11.         

महल Palace



                                                       महल

  1. जयपुर हवामहल, सिटी पैलेस/चन्द्रमहल, मुबारक महल, जल महल, बादल महल,                                 शीश महल (आमेर)
  2. टोंक         सुनहरी कोठी
  3. जैसलमेर बादल महल
  4. बूँदी         छत्र महल, सुख महल
  5. उदयपुर जगमंदिर महल, जगनिवास महल (लेक पैलेस)
  6. जोधपुर उम्मेद भवन पैलेस
  7. अलवर विजय विलास, विनय विलास
  8. भरतपुर सूरज महल
  9. पुष्कर मान महल
  10. झुंझुनूं खेतड़ी महल
  11. बीकानेर लालगढ़ महल, अनूप महल
  12. डूंगरपुर एक थम्बिया महल, बादल महल
  13. झालावाड़ काठ का रैन बसेरा (महल)


पासा सिंधुघाटी सभ्यता

पासा 
सिंधुघाटी सभ्यता


हड़प्पा में खुदाई के दौरान मलबे में 1 से 6 डॉट के साथ एक क्यूबिकल डाई पाया गया था। मोहनजो-दारो में कई ऐसे पासे भी पाए गए। जॉन मार्शल लिखते हैं: "मोहनजो-दारो में यह एक आम खेल था, यह साबित हो गया है कि टुकड़ों की संख्या पाई गई है। सभी मामलों में वे मिट्टी के बर्तनों से बने होते हैं और आमतौर पर घनाकार होते हैं, जिसका आकार 1.2 से 1.2 से 1.2 इंच तक होता है। 1.5 से 15 इंच तक 1.5। .. मोहनजो-दारो का पासा उसी तरह से चिह्नित नहीं किया जाता है जैसे कि दिन,सी भी दो विपरीत पक्षों पर बिंदुओं का योग सात की बजाय हो।            

            
 1 विपरीत 2, 3 4 के विपरीत, और 5 विपरीत 6. पाए गए सभी उदाहरण बहुत अच्छी तरह से अच्छी तरह से परिभाषित किनारों के साथ बनाए गए हैं, अंक उथले छेद व्यास में औसतन 0.1 इंच हैं। जिस मिट्टी से उन्हें बनाया गया है वह हल्का लाल है। रंग, अच्छी तरह से पके हुए, और कभी-कभी लाल धोने के साथ लेपित। ये पासा एक नरम सतह पर फेंक दिया जाना चाहिए, जैसे कि कपड़े का एक टुकड़ा, या धूल भरी जमीन पर, उनके किनारों के लिए पहनने के छोटे संकेत दिखाई देते हैं। यह अभी तक ज्ञात नहीं है। चाहे इन वस्तुओं का उपयोग जोड़े में किया गया था, लेकिन दो नमूने जो डीके एरिया [मोहनजो-दारो] में पाए गए, प्रत्येक ऊद से दूर नहीं एर, बिल्कुल उसी आकार के हैं। " (मार्शल, मोहनजो-दारो और सिंधु सभ्यता, पीपी। 551-2)
ये टेरा-कोट्टा पासे लगभग 2 सेमी के होते हैं, और 1900-2500 ईसा पूर्व के बीच के हैं।


शासकों की उपाधि


 शासकों की उपाधि Title of rulers
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                   शासक           उपाधि/उपनाम
  मुंज परमार (मालवा)   1. वाक्पतिराज  2. उत्पलराज
सिंहराज (आबू)            मरूमंडल का महाराज
अखैराज देवड़ा-प्रथम (सिरोही)   उडग़ा अखैराज
अर्णोराज (अजमेर)              महाराजधिराज, परमेश्वर, परमभट्टारक
विग्रहराज चतुर्थ (अजमेर)   1. कटिबन्धु   2. कविबान्धव
पृथ्वीराज चौहान-तृतीय (अजमेर) 1. रायपिथौरा 2.दलपुंगल   भारतेश्वर , हिंदु सम्राट,
                                                         सपादलक्षेश्वर   दल पंगुल, विश्वविजेता, राय पिथौरा
सुर्जन सिंह हाड़ा (रणथम्भौर)     राव राजा
बप्पा रावल (मेवाड़)     चाल्र्स मार्टल, हिन्दुसूर्य, कालभोज, मालभोज
तेजसिंह (मेवाड़)     उभापतिवर लब्ध प्रौढ़ प्रताप
समर सिंह (मेवाड़)     तुर्कों से गुजरात का उद्धारक ,शत्रुओं की शक्ति का अपहरणकर्ता
राणा हम्मीर (मेवाड़)     1. मेवाड़ का उद्धारक
                     2. विषम घाटी पंचानन
राव चूड़ा (मेवाड़)       मेवाड़ का भीष्म पितामह
राणा कुंभा (मेवाड़) 1. राजस्थान का स्थापत्य कला का जनक  
                2. संग्राम विश्वम्भरो
कवि महेश भट्ट (कुंभा का महाकवि) कवीश्वर
राणा साँगा (मेवाड़) 1. हिन्दूपथ , हिंदूपति  2. सैनिक  भग्नावेश,
                        3. सिपाही का अंश
महाराणा प्रताप (मेवाड़) 1.कीका    2. राजस्थान का महानतम् सुरत्ताण    3. मेवाड़ केसरी      4. हल्दीघाटी का शेर
भामाशाह (महाराणा प्रताप का प्रधानमंत्री) 1. मेवाड़ का दानवीर
2. मेवाड़ का कर्ण  3. मेवाड़ का रक्षक
जगतसिंह प्रथम (मेवाड़-उदयपुर) महाराज
राजसिंह (मेवाड़-उदयपुर) विजय कटकातु
महाराणा सज्जन सिंह (मेवाड़-उदयपुर)
1. केसर-ए-हिन्द
2. त्रह्म्ड्डठ्ठस्र ष्टशद्वद्वड्डठ्ठस्रद्गह्म् शद्घ ह्लद्धद्ग स्ह्लड्डह्म् शद्घ ढ्ढठ्ठस्रद्बड्ड (त्रष्टस्ढ्ढ)
भारमल(आमेर का शासक) 1. राजा   2. अमीर-उल-उमरा
सवाई जयसिंह(आमेर) चाणक्य
जयसिंह-द्वितीय (जयपुर) 1. सरमहाराजहाय
2. राज राजेश्वर श्री राजाधिाराज सवाई
मियाँ चाँदखाँ (सवाई प्रतापसिंह का दरबारी कवि) बुद्ध प्रकाश
सवाई रामसिंह द्वितीय(जयपुर) सितार-ए-हिन्द
सवाई माधोसिंह (जयपुर) बब्बर शेर
सवाई प्रतापसिंह(जयपुर) बृजनिधि
राव मालदेव (मारवाड़) हश्मत वाला शासक
राव चन्द्रसेन(मारवाड़) 1. मारवाड़ का प्रताप
2. प्रताप का अग्रगामी
3. मारवाड़ का पथ प्रदर्शक
4. भूला-बिसरा राजा
राव गजसिंह(मारवाड़) दलथंभन
जसवंत सिंह (मारवाड़) महाराजा
दुर्गादास राठौड़ (मारवाड़ का नायक)     1. राठौड़ वंश का उद्धारक
      2. राठौड़ों का यूलिसीज
महाराजा गजसिंह द्वितीय (मारवाड़) मारवाड़ का भागीरथ
विजयसिंह (मारवाड़)           जहाँगीर का नमूना/मॉडल
पृथ्वीराज राठौड़(मारवाड़) डिंगल का हैरोस
राव लूणकरण (बीकानेर) कलियुग का कर्ण
महाराजा रायसिंह (बीकानेर) 1. महाराजा 2. महाराजाधिराज
3. राजपूताने का कर्ण (दूसरा कर्ण)
कर्ण सिंह जांगलधर बादशाह
अनूप सिंह (बीकानेर) 1. विद्वानों का जन्मदाता  2. माही भरातिव
गंगा सिंह (बीकानेर) 1. के.सी.आई.
2. आधुनिक भारत का भागीरथ
सूरजमल (भरतपुर)         1. जाटों का प्लेटो
            2. सिनसिनवाल जाटों का अफलातून शासक
बदन सिंह (भरतपुर) बृजराज
महारावल कल्याणमल (जैसलमेर)         आधुनिक जैसलमेर का निर्माता
बाबर (मुगल शासक)   गाजी
उम्मादे (मारवाड़)     रूठी रानी
गुलाबराय (मारवाड़)       1. जहाँगीर की नूरजहाँ
2. मारवाड़ की नूरजहाँ
रमाबाई (मेवाड़) वागीश्वरी
उदयपुर के महाराणा हिन्दूआ सूरज
उदयपुर के शासक महाराणा
जोधपुर, बीकानेर के शासक महाराजा
जैसलमेर, डूंगरपुर, बाँसवाड़ा के शासक महारावल


बावडिय़ाँ Steps

बावडिय़ाँ Steps

  1. चाँद बावड़ी                   दौसा
  2. आलूदा का बुवानियाँ कुण्ड  आलूदा (दौसा)
  3. बुबानियाँ कुण्ड          आभानेरी (दौसा)
  4. भण्डारेज की बावडिय़ाँ          भंडारेज (आभानेरी, दौसा)
  5. विशाल बावड़ी                  भाण्डारेज (दौसा)
  6. सतबीसदेवरी की बावड़ी          चितौडग़ढ़
  7. देवरा बावड़ी                   बेंगू (चितौडग़ढ़)
  8. नाथजी/पुरीजीकी बावड़ी  बेंगू (चितौडग़ढ़)
  9. सुनार की बावड़ी                  बेंगू (चितौडग़ढ़)
  10. माताजी की बावड़ी                 बेंगू (चितौडग़ढ़)
  11. झालर बावड़ी                  बेंगू (चितौडग़ढ़)
  12. खुरा की बावड़ी          बड़ी सादड़ी (चितौडग़ढ़)
  13. भारतियों की बावड़ी          गाँधी नगर (चितौडग़ढ़)
  14. रानीजी की बावड़ी                  बूँदी
  15. मामादेव कुण्ड                  कुंभलगढ़ (राजसमंद)
  16. मंदाकिनी कुण्ड          अलचगढ़ (सिरोही)
  17. पाताल तोड़/लम्बी बावड़ी  धौलपुर 
  18. हर्षनाथ की बावड़ी                  हर्षगिरि (सीकर)


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